Seven chakra inlightenment illuminating your path to self discovery

By Just Real Info - जनवरी 16, 2025

Seven chakras सात चक्र

Seven chakra 
मानव शरीर में सात चक्र : हमारे भारत देश के पौराणिक ग्रंथो और अवधारणाओं के तहत इंसान के शरीर में सात प्रकार के चक्रों का जिक्र किया गया है। और प्रत्येक चक्र का अपना एक अलग अलग विशिष्ट स्थान एवम कार्य है। सात चक्र सभी मनुष्यों के शरीर में निहित होना बताया गया है। यह सभी चक्र जागृत होने का एक विशेष कारण भी है। आज के इस पद के माध्यम से सात चक्र के बारे में सम्पूर्ण जानकारी जान पाओगे । सात चक्र के बारे में जानकारी क्रमशः इस प्रकार है।

1 मूलाधार चक्र :  मूलाधार चक्र को Root Chakra भी कहते हैं। मूलाधार चक्र को जीवन का आधार माना गया है। शरीर के रीढ़ के अस्थि के सहारे पेरेनियम के समीप रहता है। मूलाधार चक्र के कारण भावनाओ की स्थितियां एवम मानसिकता में प्रभाव होता है। यदि मूलाधार चक्र की स्थिति या संतुलन बिगड़ जाए तो इंसान के ऊपर बहुत ही गहरा नकारात्मक प्रभाव पढ़ सकता है । इसके असंतुलन से मुख्य रूप से मनुष्य के अंदर भय ,अत्यधिक चिंताएं, तनाव , शारीरिक व मानसिक कमजोरियां और अन्य प्रकार के बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है । मूलाधार चक्र के कारण ही हम अपने जीवन में स्थिर रह पाते है । मनुष्य के अंदर यह मूलाधार चक्र के वजह से ही स्वयं की शक्ती, हिम्मत का अनुभव हो पाता है। इस मूलाधार चक्र को सक्रीय करने के लिए हमेशा लं मंत्र का जाप कर सकते है। 
यह मूलाधार चक्र बहुत ही आवश्यक हैं। इसलिए इनका ध्यान रखना बहुत ही अनिवार्य है। इनको संतुलित करके इंसान शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रह सकते है । और अपने खुशहाल जिंदगी का आनंद ले पाएंगे ।
इस चक्र को ध्यान और योग और क्रियाकलाप से सही किया जा सकता है । जैसे कि नीचे कुछ इनको सही करने के कुछ सामान्य उपाय लिखे गए है।

मूलाधार चक्र के बीज मंत्र लं का नियमित रूप से जाप करके इनका सक्रियता को बढ़ाया जा सकता है ।
  • नकारात्मक सोच को दूर रखने सें भी इनका सक्रियता बढ़ सकता है।
  • पर्याप्त रूप से नींद लेने से मूलाधार चक्र का सक्रियता बना रहता है ।
  • प्रकृति के साथ जुड़े रहे । क्योंकि मूलाधार को पृथ्वी का तत्व माना गया है।
  • हमेशा हरियाली जगह में समय बिताए।
  • उचित और पौष्टिक आहार का सेवन करे। 
2 स्वदिष्ठान चक्र - इस चक्र को sacral chakra के नाम से जाना जाता है । स्वदिष्ठान  चक्र को आनंद का द्वार भी माना गया है। शरीर में नाभी के समीप में यह स्थित रहता है।स्वदिष्ठान चक्र भावनाए, रचनात्मक, और आनंद से हमेशा जुड़ा रहता है। स्वदिष्ठान चक्र का मुख्य रूप से जल तत्व बताया गया है। इनका बीज मंत्र वाम है। इनका प्रतीक 6 पंखुड़ी का कमल होता है । यह स्वदिष्ठान चक्र बहुत ही महत्वपूर्ण है। इसी के माध्यम से कल्पना और प्रेरणा जागृत होता है। इसके अलावा आनंद को नियंत्रित करना , स्वयं के विश्वास को बढ़ाने, भावनाएं एवम स्वास्थ्य को सही रखने में सहायक होता है। स्वदिष्ठान चक्र में कमी होने से प्रेरणा, गुस्सा ,उदासी, भावनाओ में कमी देखने को मिल सकता हैं। 

स्वदिष्ठान चक्र की सक्रियता को बनाए रखने के लिए प्रातः काल ध्यान करना चाहिए । 
जिससे इस चक्र को शांत किया जा सके ।
  • कुछ योग आसन जैसे भुजंगासन, और प्राणायाम करने से चक्र सक्रिय होने में मददगार है।
  • अच्छे ताजा हरी भरी सब्जियों का सेवन करें। जिससे चक्र को उचित पोषण मिल सके।
  • इनका ग्रह चंद्रमा और विष्णु लक्ष्मी जी को देवता माना गया है। 
  • प्रातः समय वं का जाप अवश्य करे । इससे भी यह चक्र संतुलित रहता है।

3 मणिपुर चक्र  - navel chakra को आत्म बल और आत्मविश्वास का शक्ति केंद्र माना गया है। इसे नाभि चक्र एवम सौर चक्र के नाम से भी जाना जाता है । यह नाभी से थोड़ा से ऊपर और रीढ़ के हड्डी के मध्यम में  स्थित होता है। मणिपुर चक्र चमक और आत्मशक्ति का प्रतीक माना गया है। मणिपुर चक्र का बीज मंत्र रं है । इसी की वजह दृढ़ विश्वास की अनुभूति कर पाते है । इसके साथ ही अपने अपने भावनाओ को नियंत्रित कर पाने में सफल हो पाते है । मणिपुर चक्र के संतुलन बिगड़ जाने से आत्म विश्वास में कमी आता है। स्वयं को आलसी ,गुस्सा और चिड़चिड़ा का अनुभव होने लगता है। 
मणिपुर चक्र को सक्रिय करने के कुछ उपाय

  • प्रातः काल नवक आसन और धनुष आसन करने से संतुलन बना रहता है।
  • नियमित रूप से रं का जाप करके सक्रिय की स्थिति को सुधारा जा सकता हैं।
  • स्वास्थ्य वर्धक आहार का सेवन करने से मनीपुर चक्र को तंदुरुस्त किया जा सकता है।

4 अनाहत चक्र heart Chakra - यह अनाहत चक्र सात चक्रों में से चौथा नंबर का चक्र है । इस चक्र को करुणा और प्रेम का केंद्र माना गया है। यह चक्र हृदय के मध्यमा में स्थित होता है । इसका बीज मंत्र यं है। और इसे प्रतिदिन जाप करने से अनाहत चक्र जागृत होते है। इसी अनाहत चक्र के कारण हम प्रेम,करुणा , किसी के प्रति दया और क्षमा जैसे भावनाओ से भावुक होते है। यदि अनाहत चक्र जागृत होते है । तो प्रेम आसानी से व्यक्त हो जाते है । क्षमा और समझदारी का विकास बहुत ही अच्छे से होता है। एक सुखद शांति का अनुभव होता है।

यदि अनाहत चक्र असंतुलित हो जाए तो क्या प्रभाव पड़ेगा।
  • इनके असंतुलन से चिंता और तनाव अनावश्यक रूप से बढ़ जाते है।
  • स्वयं के आत्मसम्मान में कमी आने लगता है।
  • घबराहट जैसे दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
  • अचानक क्रोध किसी के प्रति ईर्ष्या की भावना बड़ने लगता है। 
  • इसके अलावा प्रेम और करुणा में अत्यधिक कमियां देखने को मिल सकता है।
  • भीड़भाड़ वाले जगहों से भय की आशंका हो जाता है । रक्त का संचार कम ज्यादा होने लगता ।

5 विशुद्ध चक्र throat chakra  - यह चक्र आवाज और सृजनात्मक का केंद्र है । गले के अंदर तरफ यह स्थित रहता है।  विशुद्ध चक्र आकाश तत्व का प्रतिनिधित्व करता है । जब यह विशुद्ध चक्र जागृत हो जाते है । तो व्यक्ति के मुख से सदैव सच बात ही निकलता है । इस चक्र के कारण ही हम शुद्ध और स्पष्ट रूप से बातचीत करने के लिए सक्षम होते है । जिसके पास भी यह विशुद्ध चक्र असंतुलित हो जाते है । वे झूठ का सहारा लेने लगते है । आत्म सम्मान खो देते है। बहुत कम बात करने से या अपनी आवाज को दबाने लगते है। विशुद्ध चक्र को सच बोलकर, अपनी आभार व्यक्त करके , मंत्रों के उच्चारण और ध्यान से संतुलित किया जा सकता है।

विशुद्ध चक्र को संतुलन बनाने के लिए क्या करें
  • सदैव सत्य बोलने का प्रयास करना चाहिए ।
  • संतुलन हेतु गायन और मन उच्चारण विशेष रूप से करना चाहिए 
  • अच्छे भोजन का सेवन करना चाहिए 
  • और प्रकृति के साथ अपना नाता जोड़ा चाहिए । ताकि दिल और मन अच्छे से काम करे।
6 आज्ञा चक्र ajnya chakra - आज्ञा चक्र सात चक्र में से छटवां चक्र है। आज्ञा चक्र को ही तीसरा नेत्र के नाम से जाना जाता है । जो हमारे भगवान शिव के पास था । यह मस्तक के मध्य में स्थित होता है । यह आज्ञा चक्र अंतः ज्ञान और आध्यात्मिक मार्ग दर्शन का केंद्र माना जाता है। आज्ञा चक्र के कारण ही ज्ञान और आंतरिक दृष्टि में विकास होता है। इंसान कल्पना और सोच इसके जरिए व्यक्त कर सकते है। इसी आज्ञा चक्र के कारण मन में नियंत्रण किया जा सकता है । यदि यह चक्र असंतुलित हो जाए । तो आंखो में अस्पष्टता, मन का भ्रमित होना , नींद ना आना , सोचने की कमी जैसे विकार देखने को मिल सकता है। 

चक्र संतुलन हेतु कुछ आसान से उपाय 
  • सुबह मंत्रों का जाप करे जिससे की शांति का अनुभव हो और आपके ध्यान केंद्र में बढ़ा उत्पन्न न हो ।
  • नीले रंग को देखने का प्रयास जरूर करे। या नीले वस्त्रों का धारण उचित है।
  • चक्र को संतुलन करने के लिए योग अभ्यास जरूर करे।
  • अपने अंतर्दृष्टि और अपने अंतर्मन में भरोसा जरूर रखे।
  • नियमित रूप से योग व्यायाम और ध्यान करे।

7 सहस्त्र चक्र crown chakra  - यह चक्र अंतिम चक्र है । इस चक्र अध्यात्म ऊर्जा का संचार केंद्र माना गया है।  सबसे ऊपर यानी ब्रम्ह रंध्र स्थान में यह चक्र मौजूद होता है। यह चक्र ब्रम्हांड का प्रतिनिधित्व करता है। यह 1000 पंखुड़ी का होता है। ओम मंत्र का जाप करके इस जागृत किया जा सकता है।

निष्कर्ष :- सदैव स्मरण रहे आप इस ब्रम्हांड का अमूल्य हिस्सा हो । आपके द्वारा सात चक्र को नियंत्रित या संतुलित करके अपनी क्षमता तक पहुंचा जा सकता है। और आप बेहतर जीवन का आनंद ले सके । और जीवन अर्थ पूर्ण बन सके।

ध्यान दे:-  यह हमारा लेख सिर्फ ज्ञान एवम सूचना हेतू बनाया गया है। और यह चिकित्सा सलाह का चुनाव नही है । स्वास्थ्य संबंधित अपनी डॉक्टर से सलाह ले ।










  • Share:

You Might Also Like

0 Comments