Role of Danikarna great warrior in Mahabharata

By Just Real Info - अप्रैल 09, 2024

महाभारत में दानिकर्ण महान योद्धा की भूमिका
दोस्तो आप सभी जानते हो कि कर्ण के जैसा कोई भी योद्धा, धनुर्धारी और दानवीर नही बन पाया । और न ही कभी कर्ण के जैसे कोई बन पाएगा । कर्ण को धनुविध्या में महारत हासिल था । उनके पास बहुत से अलौकिक शक्ति भी था।कर्ण का महाभारत में भी झलक मिलता है। कर्ण की शक्तियां और निष्ठा अपरंपार है।
दानिकर्ण का सृष्टि में आगमन - भारतीय संस्कृती के महाभारत के अनुसार वासुदेव की बहन कुंती ने जब दुर्वासा ऋषि का जब सच्चे मन से पूजा अर्जना किया तो कुंती के सम्मानिय और भक्ति देखकर उन्होंने कुंती को देव इच्छा पुत्र का वरदान दिया था । जिसके चलते एक दिन माता कुंती ने सूर्य देव को याद करके यह वरदान को सत्य कर दिया। जिसके चलते सूर्य देव ने कुंती को अपने अंश का पुत्र का वरदान दे दिया था । तब से कर्ण का जन्म इस संसार में हुआ । इस प्रकार से कर्ण सूर्य भगवान के पुत्र हुए। कुंती के द्वारा कर्ण को जन्म दिया गया लेकिन उनका लालन पालन उनके द्वारा नही किया गया।
दानिवीर कर्ण का मां बाप - महाभारत में यह झलक देखने को मिलता है । कि माताश्री कुंती के द्वारा नवजन्मे शिशु को समाज की डर से नदी में प्रवाहित कर दिया था। क्योंकि माता कुंती कुंवारी थी। जिसके कारण उनके समाज स्वीकार नहीं करता । इसलिए कुंती ने अपने स्वयं के पुत्र को नही के जल में छोड़ दिया। उसके पश्चात उस बहते हुए बच्चे को अधिरथ द्वारा अपने घर ले गया । अधिरथ और राधे के द्वारा उस बच्चे का पालन पोषण करने लगे । इसलिए कर्ण राधे कर्ण के नाम से जाने और पहचाने जाते है। और इस प्रकार से अधिरथ और राधे कर्ण के माता पिता हुए। और कर्ण राधे और अधिरथ के सुत पुत्र हुए।
दानवीर कर्ण का बालपन -
सूर्य पुत्र कर्ण छोटे से उम्र से ही धनुष विद्या की ओर आकर्षित हुआ करता था। वह हमेशा से एक श्रेष्ठ धनुर्धारी बनना चाहता था । जिसके लिए उन्होंने एक बार गुरु द्रोण के पास धनुष विद्या सीखने का प्रस्ताव रखा। लेकिन कर्ण एक सुत पुत्र था। जिसके कारण द्रोण ने कर्ण को धनुर्विद्या सिखाने के लिए मना कर दिया । कर्ण शुरूवात से ही सुत पुत्र होने के कारण हमेशा कष्ट और भेदभाव को सहन करता रहा । और हमेशा से पांडुओ से अपमान सहन करते रहे । लेकिन कर्ण भी अपने निर्णय और सीखने की ललक से अडिग था।
दानिकर्ण का आदर्श मार्गदर्शक - कर्ण ने धनुर्विद्या हासिल करने का पूर्ण विचार बना लिया था। उसके पश्चात कर्ण भगवान परशुराम के पास जा पहुंचे। कर्ण ने विनम्रता पूर्वक परशुराम को धनुर्विद्या सिखाने को बोला तो परशुराम ने मना कर दिया । लेकिन कर्ण ने अपने अच्छे वाणी का उपयोग करके मना लिया। सुत पुत्र होते हुए भी उन्होंने सीखने का निर्णय ले लिया था। लेकिन यह सच को छुपाए रखा कि वह एक सुत पुत्र । क्योंकि परशुराम को पता चल जाता तो वह कर्ण को प्रशिक्षण नही देते। परशुराम ने कर्ण को हर शस्त्र अस्त्र की विद्या देकर निपुण बनाया । लेकिन अंतिम में यह पता चल ही गया कि वो सुत पुत्र है। उसके पश्चात परशुराम ने श्राप दे दिया कि जब अस्त्र शास्त्र विद्या की ज्यादा आवश्यकता रहेगा । तब इन अस्त्र के अनुष्ठान की विधि को भूल जाओगे।
दानीवीर कर्ण के असीम शक्तियां वा दिव्यास्त्र - दानवीर कर्ण को अनेकों शक्तियां प्राप्त था । भगवान परशुराम ने अस्त्र ज्ञान दिया था । जिनमे से कुछ का नाम इस प्रकार है । नारायणलास्त्र, ब्रह्मास्त्र,अंजलिकास्त्र,आग्नेयास्त्र सूर्यदिव्य कवच,और वाव्याअस्त्र थे । साथ ही कर्ण हमेशा अपना विजय धनुष साथ रखते थे।
राधे कर्ण का चरित्र - कर्ण एक सच्चे और भले इंशान थे। उन्होंने हमेशा से ही दूसरों का सहायता किया। कर्ण बहुत ही शक्तिशाली, बहादुर, वीरता से परिपूर्ण था। और सबसे बड़ा बनाता है कर्ण को उनके दान वीरता का गुण क्योंकि कर्ण ने सूर्य देव के द्वारा दिए गए कुंडल और कवच को जो उनके शरीर का अभिन्न अंग के समान था । उन्हें भी चाकू से फाड़कर इंद्रदेव को दान स्वरूप दे दिया था। इसलिए युगों युगों से कर्ण के कहावत आज भी प्रचलित है। कोई ज्यादा दान कर देता है तो घर के बड़े बुजुर्ग आज भी बोलते है। कि दान वीर कर्ण के ओलाद हो । इसके साथ ही कर्ण के उच्चतम विचार और उनकी वीरता उनको और महान बनाता हैं। हमेशा से परिवर्तन की चाह रखता था ।
कर्ण की आखिर मृत्यु कैसे हुआ - जब कर्ण एक कीचड़ में फंसे बछड़े को अनजाने में बाण चला देता है । तब उस बछड़े के पालनकर्ता कर्ण को श्राप दिया था । कि जिस तरह से मेरे बछड़े प्राण त्यागे हैं। ठीक उसी प्रकार आपकी भी मृत्यु होगी। इसी कारण भगवान कृष्ण ने उस अभिषापित जगह पे अर्जुन को रथ ले जाने के लिए बोला । और कर्ण भी अपने रथ आगे बड़ाते गए। अन्ततः उनके रथ का चक्र दलदल में फस गया। और चक्र को निकलने लगा । उसी समय अर्जुन ने अंजलीका अस्त्र चला कर कर्ण को मृत्यु के मुंह में धकेल दिया।
कर्ण को महामृत्युंजय का सम्मान - जब कर्ण का अंतिम सांसे के समय हुआ । तब वह पर परशुराम जी पहुंचे । और उन्होंने कर्ण से कहा की मैं परशुराम तो चिरंजीवी हूं। लेकिन कर्ण तुम मृत्युंजय बन गए हों। कर्ण आज भी जीवित है । और उन्हें जीवित रखता है । उनकी सोच ,दानवीरता ,कर्म 
कल्की पुराण में उल्लेख मिलता है । जब कल्की अवतार होगा । उस समय कर्ण कल्की अवतार का साथ देंगे ।
सूर्य पुत्र कर्ण से हम सभी को सीखना चाहिए । चाहे जितना भी मुस्किल आ जाए उनका डट का मुकाबला करना चाहिए।
दोस्तो यह लेख महाभारत पर आधारित है । यह पोस्ट आपको जरूर अच्छा लगा होगा । 

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