The Knot of War at Kurukshetra The Clash of Dharma and Adharma

By Just Real Info - मई 05, 2024

महाभारत का परिचय - वर्तमान समय में महाभारत के सम्बंध में प्रायः प्रायः सभी को जानकारी है। इस विषय पर गहन एवम विस्तारपूर्वक जानकारी लिखा गया है। महाभारत जिसे सम्पूर्ण जगत में कुरुक्षेत्र के नाम से जाना जाता है। सर्वप्रथम महाभारत को जय संहिता के नाम से जाना जाता था। लेकिन कुछ समय बाद इसमें और भी अनेकों श्लोक जोड़ दिए गए । जिसके बाद जय संहिता नाम से महाभारत नाम रख दिया गया । इस महाभारत ग्रंथ के रचनाकार महर्षि कृष्णद्वैपायन वेदव्यास जी है। जो कि एक निषाद पुत्र थे। एवम इनके माता सत्यवती और पराशर ऋषि इनके पिता श्री थे। महाभारत संस्कृत भाषा का बहुत बड़ा महाकाव्य का संग्रह है। महाभारत में लगभग 1 लाख श्लोक उल्लेखित किया गया है। महाभारत मुख्य रूप से कौरव और पांडव पुत्रो के बीच हुए द्वंद का एक महान कथा है। जो कि यह इस संसार को धर्म और अधर्म का ज्ञान का अवबोध कराता है। महाभारत को हिंदू धर्म के लोगो द्वारा इसे पांचवा वेद भी माना गया है। साथ ही साथ यह महाभारत हिंदू और सनातन धर्म का प्रमाण भी है । यह केवल कहानी एवम ग्रंथ ही नहीं बल्कि संपूर्ण जगत को जीवन जीने का सार सिखाता है।
महाभारत का युद्ध कब हुआ - महाभारत यानि कुरुक्षेत्र के बारे में अनेकों इतिहास कारो में महाभारत की तिथि को लेकर काफी मतभेद रहा है। पारंपरिक गणना के अनुसार ऐसा माना जाता है कि महाभारत का युद्ध लगभग 3102 ईसा पूर्व में हुआ था । वही बात करें आधुनिक गणना का तो वैज्ञानिकों और आधुनिक गणना के अनुसार यह महाभारत का युद्ध 2449 ईसा पूर्व में हुआ था । जो कि यह गणना ग्रह नक्षत्र की स्थिति और खगोलीय घटना पर आधारित हैं। महाभारत का युद्ध 18 दिवस की अवधि माना जाता है। जिसमे बड़े बड़े महान योद्धा और धनुर्धारी शामिल थे । कौरव और पांडव के घमासान युद्ध में पांच पांडव को विजय प्राप्त हुआ था। यह महाभारत का युद्ध हरियाणा राज्य में हुआ था । जो आज भी हरियाणा में स्थित है । और पौराणिक प्रमाण भी मौजूद है। महाभारत में भगवान श्री कृष्ण की अहम भूमिका था। श्री कृष्ण ने पांडव के पक्ष में थे ।

महाभारत युद्ध होने के मुख्य कारण क्या था - महाभारत युद्ध के अनेकों कारण है । जिसका वर्णन नीचे किया गया है। 

  • राज्य सत्ता का लालच - कौरव पुत्र दुर्योधन को राजा बनने की बहुत ही ज्यादा लालच था। दुर्योधन हमेशा पांडव को अपना दुश्मन मानते थे । और उन्हें राज गद्दी से हमेशा दूर रखना चाहते थे। जो आगे चलकर बहुत बड़ा भयंकर युद्ध का कारण बना ।
  • जुए के दांव में हारना - कौरव पुत्र दुर्योधन ने सकुनी के माध्यम से पांडव पुत्रो को जुआ में हराकर उनका राज्य एवम द्रोपति को भी छीन लिया । दुर्योधन के द्वारा किया गया कृत्य द्रोपती का चीरहरण और पांडव पुत्रो का वनवास जाना महाभारत युद्ध का मुख्य कारण बना । 
  • द्वेष की भावना - कौरव पुत्र हमेशा से पांडव पुत्रो से द्वेष की भावना रखते थे । साथ ही उनके  वीरता और कौशलता से परेशान हुआ करते थे । यह भी एक कारण है। जो महाभारत युद्ध को एक नया मोड़ दिया ।
  • धर्म और न्याय का पालन न करना - पांडवो के पुत्रो के द्वारा सदैव निति और धर्म के राह में चले । हमेशा न्याय और धर्म का परिपालन किए। लेकिन कौरव पुत्रो ने अधर्म और अन्याय का रास्ता अपनाया । इसी कारण से भगवान श्री कृष्ण ने पांडवो का साथ दिया । अन्याय और अधर्म के साथ के कारण कौरव और पांडवो के बीच संघर्ष का स्थिति बन गया।

महाभारत युद्ध का क्या महत्व है - हिंदू धर्म में यह महाभारत का महाकाव्य सदैव महत्व रखता है। यह सिर्फ एक कहानी ही नही अपितु मनुष्यो के जीवन , न्याय , कर्मो के बारे में जानने का एक अच्छा माध्यम एवम स्रोत हैं। महाभारत के महत्व को नीचे लिखे गए बिंदु के माध्यम से समझा जा सकता है ।
  • धर्म और अधर्म का संघर्ष - महाभारत में यह जानकारी मिलता है कि पांडव ने धर्म का साथ दिया और कौरव ने अधर्म का राह अपनाया । यह इस बात को दर्शाता है कि हमेशा सत्य के राह में चलने वाले की ही विजय होती है। और अधर्म के रास्ते में चलने वालो की अंततः हार होती है।
  • कर्म और फल का शिक्षा - महाभारत के युद्ध कर्म के फल सिद्धांत पर गहरा प्रकाश डालता है । जो व्यक्ति जिस तरह का कर्म करेगा । उसके फलस्वरूप उनको फल की प्राप्ति होगी। यह महाभारत का युद्ध हमे सर्वदा सिखाता है की सदैव अच्छे कर्म करने चाहिए । ताकि अच्छे फल की प्राप्ति किया जा सके ।
  • मानवीय गुणों का संदेश - महाभारत का युद्ध इस संसार के समस्त प्राणी को मानवीय गुणों का संदेश देता है। जैसे कि साहस, वीरता , ,धर्म पालन,त्याग करने क्षमता, स्नेह, और क्षमा करने का हिम्मत इत्यादि। महाभारत का युद्ध हमे यह संदेश देता है । कि चाहे कोई भी कठिन से कठिन परिस्थिति क्यों ना आ जाए। हमे उनका सामना करना चाहिए और हमेशा सत्य और धर्म की और खड़े होना चाहिए।
  • संस्कृति और धर्म का महत्व - महाभारत का हिंदू राष्ट्र में संस्कृति और धर्म का बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान है। यह महाभारत हमारे केंद्रीय विषय है । जो हिंदू धर्म का ग्रंथ कहलाता है। महाभारत का यह युद्ध हमारे भारतीय संस्कृति में त्योहारों का आधार भी है। जो आज भी भारतवासियों के द्वारा मनाए जाते है।
  • महाभारत ज्ञान का भंडार - महाभारत को ज्ञान का संग्रह भी माना जाता है । यह सिर्फ कहानी ही नही अपितु सम्पूर्ण ज्ञान का भंडार है। इस महाभारत में हमारे जीवन के विभिन्न प्रकार के पहलु का वर्णन है। धर्म , कौशलता,युद्धकला इत्यादि का शिक्षा प्रदान करता है। महाभारत प्रेरणा का स्रोत भी है।

महाभारत में घटित घटनाऐं - महाभारत एक रोमांचित घटना का भंडारण है। महाभारत में घटित होने वाले घटनाओं का संक्षिप्त में नीचे उल्लेख किया गया है।
  • कुरुक्षेत्र संघर्ष - यह महाभारत का मुख्य युद्ध है । जो कि निरंतर 18 दिवस तक चला । जिसमे बड़े बड़े योद्धा और धनुर्धारी भाग लिए। कौरव और पांडव के बीच भयंकर रक्त और जान की हानि हुआ। इस युद्ध में लाखों से भी ज्यादा योद्धा और सैनिक मारे गए। और अंत में पांडव का विजय हुआ ।
  • द्रोपति का चीरहरण - द्रोपति का चीरहरण महाभारत का सबसे बड़ा अपमानजनक घटना माना जाता है । कौरव पुत्र दुर्योधन के द्वारा जुआ में जितने के बाद द्रोपति का वस्त्रहरण कर लिया गया था । सभा में उपस्थित सभी लोग इस घटना को देख रहे थे । लेकिन किसी के द्वारा इस अपमानजनक घटना का विरोध नही किया गया। जिसके चलते भगवान श्री कृष्ण ने द्रोपति को वस्त्रहरण से बचाया और यह महाभारत का मुख्य कारण भी बना ।
  • पांडवो का 13 वर्ष का अज्ञातवास - कौरव पुत्र दुर्योधन के योजना के कारण पांडव पुत्रो को 13 वर्ष का अज्ञातवास सहना पड़ा था। इस दौरान पांडव पुत्रो ने काफी कठिनाईयों और कठिनाईयों का सामना किया । जिसके कारण अनेकों शक्ती और ज्ञान प्राप्त किया । यह महाभारत का अहम घटना था ।
  • अभिमन्यु का हत्या - महाभारत युद्ध के दौरान चक्रव्यूह में फसे अभिमन्यु को कौरव के द्वारा मार दिया गया था। जिसके कारण पांडव को बहुत पीड़ा का सहन करना पड़ा था । अभिमन्यु की हत्या भी महाभारत का एक दुख की घटना था।
  • द्रोपति के पुत्र का हत्या - सूर्यपुत्र कर्ण और दुर्योधन के मृत्यु पश्चात अस्वथामा के द्वारा अंधेरी रात में द्रोपति के सोए हुए पुत्रो का बुरी तरह से हत्या कर दिया गया था । जो द्रोपति और पांडव के लिए बहुत बड़ा दुखदाई घटना था।

महाभारत में कौन कौन योद्धा शामिल थे -  महाभारत में अनेकों योद्धाओं ने भाग लिया । जिनका वीर गाथा आज भी प्रचलित हैं। इन वीर पुरुषो ने अपने वीरता ,शौर्य, कुशलता, से महाभारत के युद्ध का दिशा ही बदल दिया। आज भी इतिहास में इन योद्धाओं का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है। योद्धाओं के बारे में नीचे लिखे गए है । 

कौरव सेना के महान योद्धा - कौरव सेना में मुख्य रूप से पांच महान योद्धा थे।  

  • द्रोणाचार्य - द्रोणाचार्य भगवान परशुराम के शिष्य थे। और उन्हें परशुराम द्वारा दिया गया शिक्षा का पूर्ण उपयोग धनुर्विद्या सिखाने हेतु किया गया। द्रोणाचार्य महाभारत में महान योद्धा थे। जिन्होने अपनी शिक्षा देकर बड़े बड़े धनुर्धारी बनाए।
  • कर्ण - सुर्य पुत्र कर्ण जो अपने वादे और दानशीलता के कारण से जाने जाते है । कर्ण भगवान परशुराम का शिष्य था। उन्होंने दुर्योधन के मित्रता और अपने अधिकार के लिए कौरव की ओर से द्वंद किया।
  • भीष्म पितामह - भीष्म पितामह गंगा मईया और शांतनु का पुत्र था। भीष्म पितामह वीर पराक्रमी और बहुत बड़े योद्धा थे । इन्हे इच्छा मृत्यु का वरदान भी मिला था । अपने प्रतिज्ञा में अडिग होने के कारण उन्होंने कौरव के पक्ष में तैनात थे।
  • दुर्योधन - दुर्योधन गांधारी और धृतराष्ट्र का पुत्र था । दुर्योधन कौरव सेना का सेनापति के नेतृत्व में थे।  द्रोपति चिरहरण के पश्चात ही महाभारत का आरंभ हुआ था।
  • अस्वथामा - अस्वथामा गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र थे । जिन्होने अपने मित्र कर्ण और दुर्योधन को दिए वचन के कारण पांडू पुत्रो का हत्या कर दिया था। 

पांडव सेना के योद्धा - महाभारत के युद्ध में पांडव सेना धर्म और न्याय के लिए युद्ध किया था । जिनमे निम्नलिखित योद्धाओं में अपना युद्ध कुशलता और निपुणता का परिचय दिया था।

  • धनुर्धारी अर्जुन - अर्जुन कुंती और इंद्रदेव के पुत्र थे। अर्जुन एक महान धनुर्धारी के नाम से जाने जातें है। जिनके पास अत्यधिक कौशल और धनुर्विद्या की ज्ञान था। अर्जुन ने महाभारत के महान योद्धा के रूप में अपना रणभूमि में अपना परिचय दिया था।
  • गदाधारी भीम - गदाधारी भीम जिसे भीमसेन भी कहा जाता है । भीम पांडव का दूसरा पुत्र था । जिनकी माता कुंती थी । भीम अत्यंत बलशाली था। जिनका शिक्षण दाऊ बलराम द्वारा किया किया गया था। भीम गदा कला में पारंगत थे। भीम ने महाभारत के दौरान अपना शक्ति का विशेष प्रदर्शन कर जीत हासिल करने में सभी पांडव भाईयो की सहायता किया था।
  • नकुल - नकुल पांडव के तीसरे पुत्र के रूप में जाना जाता है। नकुल के पास तलवारबाजी, घुड़सवारी और धनुष विद्या  की शक्तियां और कला था। जिन्होने वनवास के दौरान मत्स्य देश के राजकुमार के रूप में कार्य किया । साथ ही साथ नकुल दिखने में काफ़ी अदभुत थे। महाभारत के युद्ध के दौरान नकुल ने अपनी पूरी शक्तियां युद्ध में समर्पित किया था।
  • सहदेव- सहदेव जिसे ज्ञान और कौशल का भंडार माना जाता है। सहदेव देवराज अश्वनी कुमार और मां माद्री का पुत्र है । सहदेव ने अपने भाई अर्जुन से ही धनुष विद्या सीखा था। इन्होंने महाभारत काल में अपने भाईयो को उचित सलाह और निर्णय देकर युद्ध में जीत हासिल कराया था। 
  • अभिमन्यु- अभिमन्यु महाभारत के महान योद्धा के रूप में जाने जाते है। जिनके पास चक्रव्यूह तोड़ने की कला और शक्ति था । अभिमन्यु जब अपने माता के गर्भ में था । तब से इस कला का मालिक था । महाभारत के दौरान अभिमन्यु ने चक्रव्यूह को तोड़ा था । लेकिन अंतिम व्यूह में फस गए थे। और कौरव के द्वारा धोखे और छल से अभिमन्यु का मृत्यु हो गया था।



भगवान श्री कृष्ण का महाभारत में योगदान 

महाभारत के युद्ध में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन का सारथी बनकर उनकी रक्षा और सुरक्षा किया । इसका तात्पर्य यह है कि की उन्होंने अर्जुन का सुरक्षा ही नही अपितु धर्म और सत्य का साथ दिया। इसके अलावा भगवान कृष्ण अर्जुन को उपदेश देते हुए युद्ध को आसान बनाया था। महाभारत के दौरान श्री कृष्ण ने पांडवो की उचित सलाह और मार्गदर्शन किया करते थे। भगवान कृष्ण ने भक्ति का मार्ग दर्शन कराकर पांडव को कौरव से बचाता था।  दुर्योधन का अंत करके अन्याय और अत्याचार का अंत किया। महाभारत एक युद्ध ही नही बल्कि यह धर्म की स्थापना के लिए रचा गया एक कहानी था। जिसमे पात्र स्वयं अपना कर्म और फल प्राप्त किए।

महाभारत के दौरान भगवान कृष्ण का क्या हुआ - 
द्वापर युग की समाप्ति निकट ही था। उस समय भगवान कृष्ण अपने नगरी यानी की द्वारका नगरी में रहते थे । महाभारत के युद्ध के पश्चात एक वृक्ष के नीचे बैठ कर आराम कर रहे थे । ठीक उसी समय एक बहेलिया तीर कमान लेकर वहा से गुजर रहा था । बहेलिया ने भगवान कृष्ण को एक हिरण समझकर अपना तीर चला दिया । और वह तीर भगवान कृष्ण के पैर को जाके लग गया । तभी उस बहेलिया ने देखा कि उन्होंने जिसे तीर मारा वह कोई हिरण नही बल्कि इस जगत का पालनहार है। उस बहेलिया ने अपने आप को बहुत कोसा और भगवान कृष्ण से माफी और अर्जी विनती किया । और भगवान कृष्ण ने उन्हें माफ भी कर दिया । और इस धरती में जन्म का सिख भी दिया । कुछ समय बाद भगवान कृष्ण ने अपने समाज के लोगो और अपने परिवार जनों को अर्जुन के माध्यम से द्वारका से दूर ले जाने को कहा । और अंत में कृष्ण ने अपना शरीर त्याग दिया। और उनकी आत्मा भगवान विष्णु में लीन हो गया ।

FAQ 
महाभारत का युद्ध कहां हुआ था ?
महाभारत का सबसे बड़ा योद्धा कौन थे ?
महाभारत का युद्ध कितने दिन तक चला ?
महाभारत में कृष्ण की मृत्यु कैसे हुआ ?
महाभारत में कौन कौन योद्धा शामिल थे ?
महाभारत युद्ध का क्या महत्व है?
महाभारत युद्ध होने के मुख्य कारण क्या था?

निष्कर्ष - महाभारत का युद्ध हमे सच्चाई के राह में चलने का ज्ञान देता है । क्योंकि हमेशा सत्य की जीत होती है। मेरे द्वारा अपने अंदर निहित जानकारी को साझा किया हु। आशा करता हु। आपको जरूर अच्छा लगा होगा। 

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