What is the secret of 33 crore gods and goddesses?क्या वाकई में त्रयस्त्रिंशत् कोटि देवी देवता हैं।

By Just Real Info - मई 06, 2024

33 कोटि देवी देवता
33 कोटि देवी देवता - हमारा भारत राष्ट्र को देव भूमि कहा जाता है। क्योंकि विश्व भर में सबसे ज्यादा भारत में ही देवी देवता अवतरित हुए हैं। हिंदू धर्म के ऋग्वेद में 33 करोड़ देवी देवता का वर्णन का उल्लेख मिलता है। आज भी बहुत से लोग 33 करोड़ देवी देवता ही मानते है दरअसल कोटि मतलब करोड़ और प्रकार होता है। इसी भ्रम के कारण आज भी 33 करोड़ देवता कहे जाते है। 33 कोटि में बहुत से देवी देवता शामिल है । जैसे कि बारह आदित्य , आठ वसु, 11 रुद्र , इंद्र और प्रजापति । उपरोक्त सभी को 33 कोटि देवता कहे जाते है । यह कहना भी गलत होगा की सिर्फ 33 ही देवी देवता है । तैतीस कोटि सिर्फ एक प्रकार है। जिस तरह से नाग कई प्रकार के प्रजाति जैसे करैत,पहाड़ चित्ती, शेषनाग, दूधनाग इत्यादि होते है । ठीक उसी प्रकार कोटि सिर्फ एक प्रकार है । जिसमे असंख्य देवी देवता सम्मिलित है। भारत देश में इतने देवी देवता है । जिनके बारे में जानने का प्रयास करे तो सारा उम्र भी कम पड सकता है। फिर भी हमारे द्वारा कुछ मुख्य जानकारी विस्तारपूर्वक निचे लिखे गए हैं।
12 आदित्य कौन है और क्या नाम है
हिंदू ग्रंथ के अनुसार बारह आदित्य दिव्य रोशनी हमारे जिन्दगी के मूल स्रोत है। आदित्यों को ऋषि कश्यप और देवी अदिति के पुत्र है। सभी आदित्य इस समस्त ब्रह्माण्ड के अनेकों पहलुओं का प्रतिनिधित्व करते है। 12 आदित्य का कुछ इस प्रकार है । वायु पुराण के अनुसार ये सभी आदित्य भूलोक के निवासी है।
1.विवस्वान 
विवस्वान को हमारे हिंदू धर्म के प्रमुख देव है। और इनकी पूजा और नमन देव के रूप में करते है। एवम इनके द्वारा ऋतुचक्र, कालचक्र, रात दिन एवम समय का प्रतिनिधित्व किए जाते है। महाभारत के कर्ण, रेवंत, एवम अश्वनी कुमार के पिता कहे जाते है ।
2.मित्रा 
मित्रा को अदिति का पुत्र बताया गया है । मित्रा इस समस्त ब्रह्माण्ड एवम सृष्टि के विकासक्रम के स्वामी है । 
3.भग 
अदिति पुत्र भगवान सूर्य देव के सात घोड़े के रथ में सवारी किए इस सृष्टि में रात दिन व्याप्त है। भगवान भग समस्त पेड़-पौधे, लता,बेल, और प्रकृति में ऊर्जा शक्ति के रूप में निहित है। इस जगत के समस्त जीव जंतु प्राणियों के दिव्य शक्ति अंग के रूप में वास करते है। साथ प्राणियों में चेतना शक्ति और ऊर्जा शक्ति का प्रतिनिधित्व संचार करते है।
4.वरुण 
वरुण देव को जल, वर्षा, सागर, महासागर,नदी, के प्रतीक एवम् देवता कहे जाते है । वरुण पूरे संसार के प्रत्येक प्राणियों में जल शक्ति के रूप में विद्यमान है। जल के बिना प्रकृति और जिंदगी का कोई अस्तित्व नहीं है । पानी के बिना सब शून्य के बराबर है। ऋग्वेद में वरुण देव को एक विशिष्ट देव बताया गया है। वरुण देव सत्य और न्याय के पक्षकार भी है । और इस पूरे सूर्यमंडल और पूरे ब्रह्मांड का व्यवस्था बनाए रखता है। वरुण देव हमारे हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। और इनकी पूजा सदियों से अब तक किया जाता है।
5.अर्यमा 
अर्यमा जिसे अर्यमन भी कहा जाता है । अर्यमा देव अदिति के ही वत्स है। अर्यमा इस सृष्टि में पूर्ण रूप से जितने भी प्राणी है । उसमे वायु शक्ति के मूल रूप में वास करते है। जिसके कारण सभी प्राणियों में जीवन का संचालन होता है। अर्यमा के द्वारा हमारे जीवन के विशिष्ट क्षणों जैसे की प्राणियों की मृत्यु, विवाह, प्रेम , स्नेह का प्रतिनिधित्व करते है। अर्यमा का पुत्र भीष्म पितामह है। जो कि महाभारत के महान योद्धा थे । अर्यमा का मंगल ग्रह में निवास माना जाता है। 
6.धाता 
हिन्दू ग्रंथ ऋग्वेद के अनुसार धाता को अदिति और ऋषि कश्यप का पुत्र के रूप उल्लेखित किया गया है । धाता का मतलब बनाने वाला या इस सृष्टि की रचना करने में ( सहायक ) होता है। इसलिए लोग आज भी इस उदाहरण का प्रयोग करते है । कि विधाता ने जन्म दिया है । तो उसमे हमारा कर्म और फल भी लिखा ही होगा । कहा जाता है कि इस ब्रम्हांड में वक्त और जीवन का रचना करने के साथ साथ उसमे नियंत्रण और सप्ताह के सातों दिन का धाता द्वारा प्रतिनिधित्व किया जाता है।
7.सवित 
सवित को सवित्र भी कहा गया है। सवित भी बारह आदित्य में से एक है । इनका भी जन्मदात्री अदिति ही है। सवित ज्ञान ऊर्जा और शक्ति का देव माना गया है । सूर्य देव के उगने से पहले का समयावधि को कहा गया है। सवित्र जन्म से लेकर मृत्यु तक एवम पुनर्जन्म का प्रतिनिधित्व करते है।
8.पूषन 
इस आदित्य को पसुधन जैसे कि गाय बकरा बैल भेड़ एत्यादि का देव कहा गया है क्योंकि यह आदित्य देव पशुओं के सुरक्षा के साथ उनकी स्वस्थ जीवन में सहायक होते है। इन्हे पोषण और विवाह के भी देवता बताया गया है। जीवित प्राणियों को आहार पूर्ति और वैवाहिक सुख को समृद्धि भी प्रदान करता है। यह पुषण देव सूर्य देव से करीब जुड़े रहते हैं। और सूर्य की तेज किरणों को अपनी आवेग से पृथ्वी और अन्य ग्रहों तक ले जाने का प्रतिनिधित्व संभालते है।
9.त्वष्टा 
हिंदू धर्म के पुराणों के अनुसार त्वष्टा आदित्य पुत्र है। त्वष्टा को दिव्य शिल्पी और सृष्टिकर्ता कहा गया है। जो की इस ब्रम्हांड के निर्माता के रूप में पहचाने जाते हैं। त्वष्टा का दिव्यशिल्पकार के रूप में ऋग्वेद में उल्लेख मिलता है। क्योंकि त्वष्टा के द्वारा इंद्र के वज्र और अनेकों दिव्य शक्ति और अस्त्र शस्त्र बनाने में सहायक थे । ऐसा कहा जाता है कि त्वष्टा की पुत्री जिनका नाम संज्ञा (संध्या) था । उनका शादी सूर्य देव के संग हुआ था । लेकिन सूर्य के तेज चमक और प्रचंड और ऊष्मा को सहन नही कर पाई जिसके चलते त्वष्टा के द्वारा सूर्य देव के शौर्य तेज को कम किया था । ताकि संध्या (संज्ञा) सूर्य के साथ ही हमेशा पास रहे । तब से माना जाता है । कि प्रत्येक दिन के शाम के समय में संध्या और सूर्य मिलते है ।

10.त्रिविक्रम( विष्णु वामन अवतार ) 
यह विष्णु हरी का वामन अवतार था । जो की अदिति के पुत्र के रूप में जन्म लिया था । बारह आदित्य में भगवान विष्णु भी आदित्य है । भगवान विष्णु को इस जगत का धर्मरक्षक एवम पालनहार कहा गया है। भगवान विष्णु का कई रूपों में पूजा किया जाता है । राम , कृष्ण, और कल्की अवतार के रूप में । त्रिविक्रम पांचवा अवतार जिसमे विष्णु ने वामन का अवतार लेकर बली को हराया था । और देवगणों का सुरक्षा किया था । जब राजा बली ने अस्वमेघ का यज्ञ कराकर तीनो भुवन में अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया था । तब विष्णु ने वामन अवतार में तीन पग मांगकर दान में वापस ले लिया था।
11.इंद्र 
इंद्र जिसे स्वर्ग का राजा और देवराज भी कहा जाता है। इंद्र ऋषि कश्यप और अदिति के बेटे थे । बारह आदित्य में से इंद्र भी था । जिसके कारण आदित्येंद्र भी कहा गया है । इंद्र सम्पूर्ण देवताओं के नेतृत्व के साथ साथ मेघ, गर्जना, बारिश, को नियंत्रित करते थे ।
12.सुर्य 
सूर्य से सभी भली भांति परिचित होंगे। सूर्य आदित्यो ही समूह है। जो हमारे इस धरा में जलवायु परिवर्तन, ऋतु परिवर्तन, और तापमान को नियंत्रित करते है । और इस समस्त ब्रह्माण्ड के प्राणियों का अपने तेज शौर्य किरण से जीवन प्रदान करते है । सूर्य का प्रकाश इस धरती के समस्त पेड़ पौधे को ऊर्जा शक्ति प्रदान करता है। हमारे हिंदू धर्म में सूर्य को देवता माना गया है। क्योंकि सूर्य के बिना जीवन का कल्पना नहीं किया जा सकता। 
रुद्र अवतारों का जन्म कैसे हुआ 
पुराणों के अनुसार कहा जाता है कि जब इंद्र देव सहित देवता जब राक्षसो से हार गए । और परेशान होकर अपने पिता श्री ऋषि कश्यप के पास जा पहुंचे । तत्पश्चात वहा पहुंच कर समस्त घटना का जानकारी कश्यप को दिया । उसके बाद महा ऋषि कश्यप ने भगवान शिव का नाम जप कर तपस्या करने लगे। खुश होकर भगवान शिव साक्षत दर्शन दिए । तब कश्यप ने वरदान मांगा की उनके पुत्र के रूप में जन्म लेकर दैत्यों से सुरक्षा करे । तब भगवान शिव ने आशीर्वाद दिया । उसके बाद महा ऋषि कश्यप की पत्नी सुरभि के द्वारा ग्यारह बच्चो को जन्म दिया । जो 11 रुद्र कहलाए।
इन ग्यारह रुद्र की विस्तृत जानकारी नीचे लिखे गए है। जो की शिव पुराण के अनुसार वर्णित है। 
Rudra avtar रुद्र अवतार 11 रुद्र


शिव के ग्यारह अवतार कौन कौन से हैं । और रुद्र अवतारो का क्या नाम है।
1 कपाली - भगवान महादेव का यह रूप कपाली का जन्म सुरभि और कश्यप से हुआ है। कपाली मतलब खोपड़ी के धारण को कहा गया है । कपाली को बुद्धि रचनाकार और विनाशक का प्रतीक माना जाता है। कुछ कथा के अनुरूप ब्रम्हा के एक शिर को काट दिया था । जो उनके हाथों में लटक गया था । जिसके कारण कपाली नाम से जाना जाता है ।
2 पिंगल - पिंगला रुद्र ग्यारह रुद्र में से एक है । पिंगला को शक्ति और वीरता का भगवान माने जाते है । पुराणों के अनुरूप पिंगला ने एक त्रिपुरासुर नाम के असुर का वध किये थे।और भारत के सोमनाथ में ज्योतिर्लिंग का संस्थापक के रूप पूजे जातें हैं। पिंगला की जानकारी हमे रुद्र संहिता नामक ग्रंथ में देखने को मिलता है । कुछ कथाओं के आधार यह भी जानकारी मिलता है कि जब दक्ष के यज्ञ में भगवन महादेव का बहुत अपमान किया था। तब पिंगला ने यज्ञ को तबाह कर दिया था ।
3 भीम - भीम को सर्वदा शक्तिशाली और बहुत हि क्रोधित देव के रुप का प्रतीक माना जाता है। भीम का मतलब भयानक और विशालकाय होता है । 
4 विरूपाक्ष - भगवान शिव का भयानक रूप या अवतार माना जाता है। विरूपाक्ष ग्यारह रुद्र का ही हिस्सा है । विरूपाक्ष विनाशकारी और क्रोधित रूप कहा गया है । ग्रंथो द्वारा इन्हे त्रिसूल और अन्य अस्त्र के साथ भयंकर क्रोधित रूप में चित्रित किया गया है। विरूपाक्ष का मंदिर कर्नाटक में आज भी विद्यमान है। जिनकी पूजा पाठ भक्तगण करते है।
5 विलोहित - विलोहित भगवान शिव के अवतार माना जाता है । विलोहित रौद्र और क्रोध शक्ती का प्रतीक माना गया है। इसे बुराई का नाश करने वाला देवता कहे जाते है। 
6 भव - भव को सर्वव्याप्त देवता कहे जाते है । और यह महादेव का ही रूप है। भव का अर्थ है अस्तित्व यानी की इस सृष्टि में जो व्याप्त है ।शिव का अवतार भव यानी कि शिव ही है। भव रचनात्मक का प्रतीक माना गया है।
7 अजपाद - अजपाद सुरभि पुत्र एवम ग्यारह रुद्र का अवतार है । परिवर्तन और ब्रह्मांड के अनेकों शक्तियों का प्रतिनिधित्व करते है।
8 आपिर्बुध्य - आपिर्बुध्य इस सृष्टि का सार कहा गया है। इस धरती के मूलभूत आधार जैसे पानी और चेतना का प्रतिनिधित्व करते है। इन्हे परिवर्तन और अनुकूलन का मुख्य प्रतीक माना जाता है।
9 शंभू - शंभू रुद्र का अवतार जिन्हे निलोहित भी कहा जाता है। शंभू रुद्र अवतार माना जाता है । संभू शान्ति और सद्भाव के देवता है । 
10 चंड - भगवान शंकर का क्रोधित रूप जिसे चंड के नाम से जाना जाता है । यह ग्यारह रुद्र अवतार में से एक है । अत्यंत शक्तिशाली के साथ साथ इस ब्रम्हांड का प्रतिनिधित्व करते है।
11 शास्ता - शिव पुराण के अनुसार यह भी भगवान शिव का ही अवतार कहे जाते है । जो की कश्यप और सुरभि का पुत्र है।
8 वसु का जन्म कैसे हुआ 
प्रजापति दक्ष की पुत्री जिनका नाम वसु था । उनका व्याह धर्म से हुआ था । आठ पुत्रो के जन्मदाता है । जिन्हे आठ वसु या अष्टवसु के नाम से जाने जाते है । सभी वसु इस समस्त ब्रम्हांड में अनेकों दिव्यशक्तियो का प्रतिनिधित्व करते है। आठ वसु का नाम अलग अलग वेद पुराणों में भिन्न भिन्न है ।


आठ वसु का नाम एवम उनके विशेषताएं 
1.अहश - अहश को अग्निदेव के नाम से जाना जाता है। जो अत्यंत ज्वलनशील, और दीप्तिमान होने के साथ साथ पवित्रता का विशेषता है । जिसे अपने अंदर समाहित कर ले वह स्वतः पवित्र हो जाता है।
2.ध्रुव - ध्रुव तारा के देव कहा गया है जो इस ग्रह का प्रतिनिधित्व करते है । यह देव स्थिरता , अडिगता और ध्रुवीय दिशाओं के प्रतीक माने जाते है ।
3.सोम - सोम को चंद्र देव कहा जाता है । जो वृद्धि और सितलता के प्रतीक माने गए है । 
4.धरा - धरा जिन्हे पृथ्वी देवी कहे जाते है । प्राकृतिक संपदा, प्राणियों का पोषण और समृद्धि का प्रतीक है। 
5.अनिल - जिन्हे वायु देव या पवन देव के नाम से जाता है । गतिशीलता, जीवनदाता एवम परिवर्तन के देवता कहे जाते है। 
6.अपा - जल के देवता के रूप में माने जाते है। निरंतरता और वाहिनी के प्रतीक है । जो प्राणियों और वनस्पति में जीवन हेतु सहायक है 
7.प्रत्युष - भोर के देवता कहे जाते है । आशा, प्रारब्ध और उज्जवला के प्रतीक है ।
8.प्रभाश- इन्हे सूर्य देव कहा गया है । जो  प्रकाश ऊर्जा जीवन शक्ति का प्रतीक माना जाता है।
दो अस्वनीकुमार - असत्य और दस्त्र
33 कोटि देवी देवताओं में दो अस्वनीकुमार भी है । जिनका नाम नासत्य और दस्त्र है। अस्वनीकुमार को देवताओं के चिकित्सक कहे गए है। जिन्हे पूर्ण आयुर्वेद का ज्ञान था । और इन्हे ही आयुर्वेद के प्राचीन आचार्य बताए गए है।

ये सभी 12 आदित्य , 8 वसु ,11 रुद्र,और 2 अस्वनी कुमार मिलकर कुल 33 हुए । जिनके कारण 33 कोटि देवी देवता कहे जाते है। 
Conclution 
हमारे ब्लॉग में दिया गया जानकारी किसी भी प्रकार के अंधविश्वास को बढ़ावा नही देता । यह सिर्फ शिक्षा के उद्देश्य से लिखा गया है। 

आशा करता हु जानकारी अच्छा लगा होगा । यदि किसी भी प्रकार से मुझसे लेखन में त्रुटि हुआ होगा तो हमे contact करे। ताकि उसे सुधार किया जा सके । 






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