कठिनाइयों से सफलता तक प्रेरणादायक सफर की नया कहानी
By Just Real Info - जनवरी 17, 2025
परिचय कभी कभी जिंदगी में कुछ ऐसे भी परेशानियां का सामना करना पड़ता है । ऐसे लगता है जैसे पूरा समस्त संसार हमारे खिलाफ खड़ा हो गया हो। और सारे सपने एवं इच्छाएं टूट से जाते है। जीवन के सभी मोड़ पर कठिनाई और रुकावट का समस्या नजर आने लगता है। लेकिन यह हमारा आज का कहानी ऐसा है। जो संकल्प और समर्पण की भावना का एक मिशाल प्रस्तुत करेगा। यह कहानी 20 वर्षीय बालक प्रत्यूष का है । जो जीवन में आने वाले समस्त कठिनाई और परेशानियों से लड़ाई करते हुए अपने इच्छाओं और सपनो को सकार करता है। और सफलता की ऊंची उड़ान भरता है।
1. शुरूवात में किए संघर्ष का सामना :- प्रत्यूष का जन्म हिन्दुस्तान के एक के छोटे गांव में हुआ था । जो चारों ओर पहाड़ और जंगलों से घिरा हुआ था। जहां पर जीवन के मूल आवश्यकता का पूर्ति करना बहुत ही मुश्किल का कार्य था। प्रत्यूष के मां बाप एक छोटे किसान थे। जो बहुत ही गरीब थे और दयनीय स्थिति में रहते थे। माता पिता गरीब होने के बावजूद भी शिक्षा को महत्व देते थे। और वे चाहते थे कि प्रत्यूष खूब पढ़ाई लिखाई करे और एक दिन बड़ा आदमी बने। लेकिन स्कूल गांव से काफी दूर में स्थित था। और गरीब परिवार से होने के कारण संसाधनों की बहुत कमी था। फिर भी प्रत्यूष ने हार नहीं माना। वह रोज नंगे पैरों से पहाड़ी और जंगलों को पार करते हुए रोज स्कूल जाना प्रारंभ किया। उनके पास पहनने को अच्छे स्कूल कपड़े नहीं थे। बरसात के दिनों में भीगते हुए स्कूल जाता था । उन्होंने कड़ी मेहनत करता रहा और आखिरकार उनका परिश्रम रंग लाया। और प्रत्यूष पढ़ाई में बहुत आगे बढ़े।
2. मुसीबतों की घड़ी का वक्त:-
प्रत्यूष का जीवन अच्छे तरीके से गुजर ही रहा था तभी एक नया मुसीबत आ गया। उनके पिता जी अचानक ही बहुत गंभीर बीमारी से ग्रसित हो गए । प्रत्यूष को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह अपना पढ़ाई को जारी रखे या अपने पिता जी के सेवा में लग कर घर के कामों में हाथ बटाए। पिता जी के बीमार पढ़ जाने के कारण प्रत्यूष बहुत ही मानसिक तनाव में आ गए। सामने कुछ रास्ता नजर नहीं आ रहा था। उन्हें पिता जी के इलाज हेतु बहुत ही ज्यादा पैसों की आवश्यकता होने लगा। अब प्रत्यूष के पास दो ही चयन रह गए थे । या तो वह अपना पढ़ाई छोड़ कर घर के काम में लग जाए। या तो अपनी पढ़ाई को लगन और मेहनत से करे। बहुत ही सोच विचार कर प्रत्यूष ने अपना पढ़ाई को जारी रखने का निर्णय लिया । क्योंकि उनको लगता था कि घर की गरीबी उचित शिक्षा से ठीक किया जा सकता है। उनके लिए यह निर्णय काफी कठिन था। लेकिन और कोई भी रास्ता नहीं था ।
3.सफलता की पहली सीढ़ी :-
प्रत्यूष ने कठिनाइयों का सामना करते करते अपना परीक्षा पास किया और उनको जिला में प्रथम आने का अवसर मिला । और उनके स्कूल की तरफ से अच्छा इनाम के तौर पर पैसा मिला । उन्हीं ईनाम के पैसों से वह अपने पिता का इलाज कराया। अब उनको एक उम्मीद की किरण नजर आने लगा । उन्होंने फिर से ठान लिया । वह अब और ज्यादा मेहनत और निष्ठा से अपना पढ़ाई करेगा । उसने अपनी शिक्षा को और बेहतर बनाने के लिए शहर के स्कूल में जाने का निर्णय बना लिया । और वह एक दिन शहर के अच्छे स्कूल में जाकर अपना नाम दर्ज करवा लिया । और अगला दिन वह स्कूल पढ़ाई करने के लिए निकल पड़े।
4. शहर के नए माहौल में संघर्ष:-
अब प्रत्यूष अपने पढ़ाई को और बेहतर बनाने के लिए एक अलग ही शहरी वातावरण में प्रवेश किया। लेकिन शहर का माहौल बहुत ही भिन्न था। तभी प्रत्यूष ने अपने मां बाप को याद करते हुए सोचा कि वह अपने घर से बहुत ही दूर आ गया है । जिसके कारण से उन्हें अकेला पन महसूस होने लगा। वह जब अपने क्लास में जाता था तो उनके बाकी दोस्त यार बहुत ही अच्छे और संपन्न परिवार से थे । और उन सभी के पास बहुत ही ज्यादा सुविधा था। कही न कही प्रत्यूष के मन में यह बात आ ही जाता था । फिर भी प्रत्यूष ने कभी भी इन मनोबल को कम नहीं किया। कुछ ही दिनों बाद वह सामान्य लड़कों की तरह रहना सिख लिया। और बहुत से दोस्त भी बना लिए । अपने पढ़ाई में में ध्यान देने लगे और साथ में शहर में छोटे मोटे कामों को भी करने लगा जिससे उनको थोड़ा आमदनी हो जाता था । अब उसने अपना आर्थिक स्थिति को सुधारने में काफी मेहनत करने लगे। क्योंकि उसने महसूस किया कि आवश्यकता से ज्यादा मेहनत और देखने का नजरिया महत्व रखता है।
और यह बात उनको हमेशा प्रेरित करता था । इस प्रकार बहुत दिक्कत का सामना करते हुए उसने अपना पढ़ाई पूर्ण किया ।
5 . नौकरी का तलाश
पढ़ाई पूरा हो जाने के बाद प्रत्यूष अब नए नए कंपनियों और संस्थानों में अपना इंटरव्यू देने लगे ताकि कोई अच्छा आवक वाला नौकरी मिल सके। लेकिन कई बार आवेदन के बावजूद भी उन्हें नौकरी नहीं मिल रहा था । एक दिन बहुत ही उदास बैठ था। तभी उसके मां ने देखकर पूछा क्या हुआ बेटा क्यों उदास बैठा है। तभी प्रत्यूष ने सारा बात बताया। यह सुन कर उनकी मां बोली बेटा असफल हो जाना एक कदम है जो सफलता की सीढ़ियों को पार करा देता है। और असफलता जीवन का भाग है । जो हमेशा कुछ न कुछ सिख दे जाता है। तभी इंसान को उस चीज वास्तविकता पता चलता है। अपनी म का यह सभी बात सुनकर उनमें और हौसला आ गया। और इंटरव्यू की खूब तैयारी किया और आखिरकार उनको एक दिन बहुत ही आमदनी वाला नौकरी मिल गया।
6. समाज सेवा का उद्देश्य
प्रत्यूष अपनी नौकरी बहुत ही खूब धन कमाया और अपने घर को बहुत ही अच्छा से बनवा लिया । अपने पिता जी को अच्छे उपचार दिला कर उनका स्वास्थ्य को सही किया। अब उनके और परिवार का स्थिति सुधार चुका था। अब प्रत्यूष ने गांव जाकर छोटे छोटे बच्चे को पढ़ाने लगा। और कुछ सालों बाद उन्होंने एक संस्था बना लिया। अब पूरे आसपास के गांव के प्रत्यूष के संस्था में पढ़ने आते थे। इस तरह से उन्होंने सभी को मुफ्त में शिक्षा प्रदान करना शुरू कर दिया। इस प्रकार से प्रत्यूष ने गरीबी से ऊपर उठकर संघर्ष करते करते अपना उद्देश्य और मुकाम हासिल कर लिया।
कहानी से सीख :-
1. असफल होने के बाद भी हार नहीं मानना चाहिए। क्योंकि असफल होने से ही जीवन में अच्छे सिख मिलते है।
2. कठिनाइयां से जब सामना होता है तभी स्वयं का विश्वास बढ़ता है।
3. समाज के लिए किए गए कार्य सुखदाई होता है।
यह कहानी पूरी तरह से काल्पनिक है । इसे शिक्षा के उद्देश्य से लिखा गया है।
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